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कविता

दिन तुलसीचौरे के वासी

कुमार रवींद्र


कहाँ गए वे
दिन तुलसीचौरे के वासी।

पहले रहते थे
ये सूरज नदी-किनारे
जल पीते थे मीठे
तब घर-घाट हमारे
अब तो सुनते
बरसों से है नदी उपासी।

गुंबद-नीचे
जंगल-पगडंडी-घर खोए
सड़कों पर हैं
लोग निकलते सोए-सोए
अब के
सपने भी हैं, भाई, कन्यारासी।

जले पंख-पर
महक भोर की वे लाए थे
हमने खुद ही
आँगन अपने सुलगाए थे
अब गुनते हम
क्यों हैं साँसें सत्यानासी।
 


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